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43. मुज्झदि वा रज्जदि वा दुस्सदि वा दव्वमण्णमासेज्ज।
जदि समणो अण्णाणी बज्झदि कम्मेहिं विविहेहिं।।
वा
मुज्झदि . (मुज्झ) व 3/1 अक मूर्च्छित होता है अव्यय
विकल्प बोधक अव्यय रज्जदि (रज्ज) व 3/1 अक आसक्त होता है अव्यय
विकल्प बोधक अव्यय दुस्सदि (दुस्स) व 3/1 सक द्वेष करता है अव्यय
तथा दव्वमण्णमासेज्ज [(दव्वं)+ (अण्णं)+
(आसेज्ज)] दव्वं (दव्व) 2/1 द्रव्य को अण्णं (अण्ण) 2/1 वि आसेज्ज (आस) संकृ प्राप्त करके अव्यय
यदि समणो (समण) 1/1
श्रमण अण्णाणी (अण्णाणि) 1/1 वि अज्ञानी
(बज्झदि) व कर्म 3/1 अनि बाँधा जाता है (कम्म) 3/2
कर्मों से विविहेहिं (विविह) 3/2 वि अनेक प्रकार
पर
बज्झदि कम्मेहिं
अन्वय- जदि समणो दव्वमण्णमासेज्ज मुज्झदि वा रज्जदि वा दुस्सदि वा अण्णाणी विविहेहिं कम्मेहिं बज्झदि।
अर्थ- यदि श्रमण पर द्रव्य को प्राप्त करके (उसमें) मूर्छित (आत्मविस्मृत) होता है, (उसमें) आसक्त होता है तथा (उससे) द्वेष करता है (तो) (वह) अज्ञानी (है) (और) (इसलिए) अनेक प्रकार के कर्मों से बाँधा जाता है। प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
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