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दंसणणाणचरित्तेसु तीसु जुगवं समुट्टिदो जो दु। एयग्गगदो त्ति मदो सामण्णं तस्स पडिपुण्णं।।
दसणणाणचरित्तेसु [(दंसण)-(णाण)
(चरित्त) 7/2] तीसु (ति) 7/2 वि
अव्यय समुट्ठिदो (समुट्ठिद) भूक 1/1 अनि
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान
और सम्यक्चारित्र में तीनों में एक ही साथ । उचित प्रकार से. प्रयत्नशील
जुगवं
जो
ही
एयग्गगदो त्ति
एकाग्रचित्त हुआ
(ज) 1/1 सवि अव्यय [(एयग्गगदो)+ (इति)] [(एयग्ग) वि-(गद) भूकृ 1/1 अनि] इति (अ) = अतः (मद) भूकृ 1/1 अनि (सामण्ण) 1/1 (त) 6/1 सवि (पडुिण्ण) 1/1 वि
अतः
माना गया
मदो सामण्णं तस्स पडिपुण्णं
श्रमणता उसके परिपूर्ण
अन्वय- जो दंसणणाणचरित्तेसु तीसु जुगवं समुट्ठिदो दु एयग्गगदो त्ति मदो तस्स पडिपुण्णं सामण्णं ।
अर्थ- जो (श्रमण) सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र (इन) तीनों में एक ही साथ उचित प्रकार से प्रयत्नशील (है) (वह) ही (मोक्ष प्राप्त करने के लिए) एकाग्रचित्त हुआ माना गया (है) अतः उसके (ही) परिपूर्ण श्रमणता (है)।
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प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार