________________
41. समसत्तुबंधुवग्गो समसुहदुक्खो पसंसणिंदसमो।
समलोट्टकंचणो पुण जीविदमरणे समो समणो।।
समसत्तुबंधुवग्गो
समान, शत्रु और बंधुसमूह समान, सुख-दुख
समसुहदुक्खो
*पसंसर्णिदसमो
समलोढुकंचणो
[(सम) वि-(सत्तु )(बंधुवग्ग) 1/1] [(सम) वि-(सुह)(दुक्ख) 1/1] [(पसंसा)-(णिंदा)(सम) 1/1 वि] [(सम) वि-(लोह)(कंचण) 1/1 वि] अव्यय [(जीविद)-(मरण) 7/1] (सम) 1/1 वि (समण) 1/1
प्रशंसा-निंदा समान समान, मिट्टी का ढेला और सोना और जीवन-मरण में
• पुण
जीविदमरणे
समो
समान
समणो
श्रमण
अन्वय-समसत्तुबंधुवग्गो समसुहदुक्खो पसंसणिंदसमो समलोटुकंचणो पुण जीविदमरणे समो समणो।
अर्थ- (जिसके लिए) शत्रु और बंधुसमूह समान (है), सुख-दुख समान (है), प्रशंसा-निंदा समान (है), मिट्टी का ढेला और सोना समान (है) और (जो) जीवन-मरण में समान (है) (वह) श्रमण (है)।
समास में पसंसा' का पसंस' तथा 'णिंदा' का 'णिंद' किया गया है। (प्राकृत व्याकरण, पृष्ठ 21)
प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
(51)