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________________ 40. पंचसमिदो तिगुत्तो पंचेंदियसंवुडो जिदकसाओ। दसणणाणसमग्गो समणो सो संजदो भणिदो॥ .. पंचसमिदो [(पंच) वि-(समिद) 1/1 वि] पाँच प्रकार से . सावधान तिगुत्तो पंचेंदियसंवुडो तीन प्रकार से संयत पाँचों इन्द्रियाँ नियन्त्रित की गई जीत ली गई है कषाय दर्शन और ज्ञान से जिदकसाओ [(ति) वि-(गुत्त) 1/1 वि] [(पंच) वि-(इंदिय)- (संवुड) भूकृ 1/1 अनि] [(जिद) भूकृ अनि(कसाअ) 1/1] [(दसण)-(णाण)(समग्ग) 1/1 वि] (समण) 1/1 (त) 1/1 सवि (संजद) 1/1 वि (भण) भूकृ 1/1 दंसणणाणसमग्गो समणो श्रमण वह संयमी संजदो भणिदो कहा गया अन्वय- पंचसमिदो तिगुत्तो पंचेंदियसंवुडो जिदकसाओ दंसणणाणसमग्गो सो समणो संजदो भणिदो। ____ अर्थ- (जो) (श्रमण) पाँच प्रकार से सावधान (है) अर्थात् सावधानी पूर्वक) पाँच (ईया, भाषा, एषणा आदि) समितियों का पालन करनेवाला है, तीन प्रकार से संयत (है) अर्थात् मन, वचन और काय के संयम के कारण तीन गुप्ति सहित है, (जिसके द्वारा) पाँचों (स्पर्शन, रसना आदि) इन्द्रियाँ नियंत्रित की गई (हैं), कषाय जीत ली गई (है) (तथा) (जो) दर्शन (शुद्धात्म-श्रद्धा) और ज्ञान (स्व-दृष्टि) से पूर्ण है, वह श्रमण संयमी कहा गया (है)। (50) प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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