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________________ 39. परमाणुपमाणं वा मुच्छा देहादिएसु जस्स पुणो। विज्जदि जदि सो सिद्धिं ण लहदि सव्वागमधरो वि।। परमाणपमाणं परमाणु परिमाण वा मुच्छा मोह/आसक्ति देहादिएसु देहादि में जस्स जिसके पुणो परन्तु [(परमाणु)-(पमाण) 1/1] (परमाण)-(पमाण) 1/11 अव्यय (मुच्छा ) 1/1 [(देह)+ (आदिएसु)] [(देह)-(आदिअ) 7/2] 'अ' स्वार्थिक (ज) 6/1 सवि अव्यय (विज्ज) व 3/1 अक अव्यय (त) 1/1 सवि (सिद्धि) 2/1 अव्यय (लह) व 3/1 सक [(सव्व)+(आगमधरो)] [(सव्व) सवि-(आगम)-.. (धर) 1/1 वि] अव्यय विज्जदि जदि विद्यमान है यदि सिद्धि वह सिद्धि को . नहीं लहदि प्राप्त करता है सव्वागमधरो समस्त आगम को धारण करनेवाला भी • अन्वय- पुणो जस्स जदि परमाणुपमाणं वि देहादिएसु मुच्छा विज्जदि सो सव्वागमधरो वा सिद्धिं ण लहदि। अर्थ- परन्तु जिस (श्रमण) के यदि परमाणु परिमाण भी देहादि (पर द्रव्यों) में मोह/आसक्ति विद्यमान है (तो) वह (श्रमण) समस्त आगम को धारण करनेवाला (जाननेवाला) (होता हुआ) भी सिद्धि को प्राप्त नहीं करता है। प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार (49)
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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