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37. ण हि आगमेण सिज्झदि सद्दहणं जदि वि णत्थि अत्थेसु।
सदहमाणो अत्थे असंजदो वा ण णिव्वादि।।
अव्यय
अव्यय
आगमेण सिज्झदि
(आगम) 3/1 (सिज्झ) व 3/1 अक (सद्दहण) 2/1 अव्यय
नहीं ही आगम से मुक्त होता है श्रद्धान
सद्दहणं
जदि
अव्यय
णत्थि अत्थेसु सद्दहमाणो अत्थे असंजदो
अव्यय (अत्थ) 7/2 (सद्दह) वकृ 1/1 (अत्थ) 2/2 (असंजद) 1/1 वि अव्यय अव्यय (णिव्वा) व 3/1 अक
नहीं है पदार्थों में श्रद्धा करता हुआ पदार्थों असंयमी
और
नहीं मुक्त होता है
णिव्वादि
अन्वय- जदि अत्थेसु सद्दहणं णत्थि आगमेण हि ण सिज्झदि वा अत्थे सद्दहमाणो वि असंजदो ण णिव्वादि।
अर्थ- जो (जीव-अजीव आदि) पदार्थों में श्रद्धान नहीं (करता है) (वह) (केवल) आगम (अध्ययन) से ही मुक्त नहीं होता है। और (जो) पदार्थों की श्रद्धा करता हुआ भी असंयमी (रहता है) (तो) (भी) (वह) मुक्त नहीं होता
प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
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