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36. आगमपुव्वा दिट्ठी ण भवदि जस्सेह संजमो तस्स।
णत्थीदि भणदि सुत्तं असंजदो होदि किध समणो।।
आगमपुव्वा दिट्ठी
भवदि जस्सेह
संजमो तस्स णत्थीदि
[(आगम)-(पुव्व)' 1/1 वि] आगम से युक्त/उत्पन्न (दिट्ठि) 1/1
सम्यग्दर्शन अव्यय
नहीं (भव) व 3/1 अक
होता है [(जस्स) + (इह] जस्स (ज) 6/1 सवि जिसका इह (अ) =
इस लोक में (संजम) 1/1
संयमाचरण (त) 6/1 सवि
उसके [(णत्थि) + (इदि] णत्थि (अ) = नहीं है इदि (अ) = निश्चय ही निश्चय ही (भण) व 3/1 सक कहता है (सुत्त) 1/1
सूत्र (असंजद) 1/1 वि असंयमी (हो) व 3/1 अक होता है अव्यय
कैसे (समण) 1/1
श्रमण
नहीं है
भणदि सुत्तं असंजदो होदि
किध
समणो
___ अन्वय- सुत्तं भणदि जस्सेह दिट्ठी आगमपुव्वा ण भवदि तस्स संजमो णत्थीदि असंजदो समणो किध होदि।
अर्थ- सूत्र कहता है- इस लोक में जिस (श्रमण) का सम्यग्दर्शन आगम (अध्ययन) से युक्त/उत्पन्न नहीं है उस (श्रमण) के निश्चय ही संयमाचरण नहीं होता है, (तो) (जो) असंयमी (है) (वह) श्रमण कैसे होगा?
1. 2.
समास के अन्त में 'पुव्व' शब्द का अर्थ है- ‘से युक्त। प्रश्नवाचक शब्दों के साथ वर्तमानकाल का प्रयोग प्रायः भविष्यत्काल के अर्थ में होता है।
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प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार