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________________ 35. सव्वे आगमसिद्धा अत्था गुणपज्जएहिं चित्तेहि। जाणंति आगमेण हि पेच्छित्ता ते वि ते समणा।। सव्वे पदार्थ आगमसिद्धा अत्था गुणपज्जएहिं चित्तेहिं जाणंति आगमेण (सव्व) 1/2 सवि सभी [(आगम)-(सिद्ध) 1/2 वि] आगम से स्थापित (अत्थ) 1/2 [(गुण)-(पज्जअ) 3/2] गुण-पर्यायों सहित (चित्त) 3/2 वि नाना प्रकार की (जाण) व 3/2 सक जानते हैं (आगम) 3/1 आगम से अव्यय निश्चय ही (पेच्छ) संकृ समझकर (त) 2/2 सवि अव्यय पादपूरक (त) 1/2 सवि (समण) 1/2 हि पेच्छित्ता उनको कतन समणा श्रमण अन्वय- सव्वे अत्था चित्तेहिं गुणपज्जएहिं आगमसिद्धा ते आगमेण वि पेच्छित्ता जाणंति ते हि समणा। अर्थ- सभी (जीव-अजीव) पदार्थ नाना प्रकार की गुण-पर्यायों सहित आगम से स्थापित हैं। (जो) (गुण-पर्यायों सहित) उन (पदार्थों) को आगम से समझकर जानते हैं, वे निश्चय ही श्रमण (हैं)। प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार (45)
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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