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________________ 34. आगमचक्खू साहू इंदियचक्खूणि सव्वभूदाणि। देवा य ओहिचक्खू सिद्धा पुण सव्वदो चक्खू।। आगमचक्खू साहू आगम से ज्ञान श्रमणों में इन्द्रियों से ज्ञान समस्त जीवों में इंदियचक्खूणि सव्वभूदाणि [(आगम)-(चक्खु) 1/1] (साहु) 2/2-7/2 [(इंदिय)-(चक्खु) 1/2] [(सव्व) सवि-(भूद) 2/2-7/2] (देव) 2/2+7/2 अव्यय [(ओहि)-(चक्खु) 1/1] (सिद्ध) 2/2-7/2 देवा देवों में और अवधि से ज्ञान . सिद्धों में ओहिचक्खू सिद्धा पुण सव्वदो चक्खू अव्यय परन्तु अव्यय पूर्णरूप से ज्ञान (चक्खु) 1/1 अन्वय- साहू आगमचक्खू सव्वभूदाणि इंदियचक्खूणि य देवा ओहिचक्खू पुण सिद्धा सव्वदो चक्खू। __ अर्थ- (मोक्ष-साधक) श्रमणों में आगम से (तत्त्वों का) ज्ञान (घटित होता है), समस्त (संसारी मोहाच्छादित) जीवों में (सीमित मूर्त का) इन्द्रियों से (विविध) ज्ञान (आता है) और देवों में अवधि से (मूर्त का ही) ज्ञान (उत्पन्न होता है) परन्तु (सर्वदर्शी) सिद्धों में पूर्णरूप से (पदार्थों का) ज्ञान (रहता है)। 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) नोटः संपादक द्वारा अनूदित (44) प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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