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29.
एक्कं
खलु
तं
भत्तं
अप्पडिपुण्णोदरं
जहालद्धं
चरणं
भिक्खेण
दिवा
ण
रसावेक्खं
एक्कं खलु तं भत्तं अप्पडिपुण्णोदरं जहालद्धं । चरणं भिक्खेण दिवा ण रसावेक्खं ण मधुमंसं । ।
ण
मधुमंसं
(एक्क) 1/1 सवि
अव्यय
अव्यय
(भत्त) 1 / 1
[(अप्पडिपुण्ण)+(उदरं)] [(अप्पडिपुण्ण) वि
(उदर) 1 / 1]
[(जहा) अ - (लद्ध)
भूकृ 1 / 1 अनि ] (चरणं) 2/1
द्वितीयार्थक अव्यय
( भिक्ख ) 3 / 1
अव्यय
अव्यय
[ (रस) - ( अवेक्खा) 2 / 1]
अव्यय
[ ( मधु ) - (मंस) 1 / 1]
एक समय
पादपूरक
वाक्य- उपन्यास
आहार
पूरा नहीं भरा गया
पेट
जैसा प्राप्त किया गया
प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र -अधिकार
चर्या से
भिक्षा-सहित
दिन में
नहीं
रसों की चाह
नहीं
मधु-मांस
अन्वय- भत्तं दिवा एक्कं खलु भिक्खेण चरणं जहालद्धं तं ण रसावेक्खं ण मधुमंसं अप्पडिपुण्णोदरं ।
अर्थ - (श्रमण के द्वारा) आहार दिन में एक समय भिक्षा-सहित चर्या से जैसा प्राप्त किया गया (है) (वैसा) (ग्रहण किया जाता है) (तथा) (वह श्रमण ) रसों की चाह नहीं (रखता है) (और) (उस आहार में) मधु-मांस नहीं (होता है) (तथा) (उस आहार से) पेट पूरा नहीं भरा गया ( है ) ।
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