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28. केवलदेहो समणो देहे वि ममत्तरहिदपरिकम्मा । आत्तो तं तवसा अणिगूहिय अप्पणो सत्तिं । ।
केवलदेहो
समणो
देहे'
वि
अव्यय
ममत्तरहिदपरिकम्मा [ ( ममत्त ) - ( रहिद) वि
(परिकम्म) 2 / 2 ]
( आजुत्त) भूक 1 / 1 अनि
आ
ਰਂ
तवसा 2
अणिगूहिय
अप्पणो
सत्तिं
1.
[ ( केवल ) वि - (देह) 1 / 1] मात्र देह
( समण) 1 / 1
श्रमण
(देह) 7/13/1
देह से
भी
2.
(38)
(a) 2/1
( तवसा ) 3 / 1 - 7 / 1 अनि
( अ - णिगूह) संकृ
अन्वय- समणो केवलदेहो देहे वि ममत्तरहिदपरिकम्मा अप्पणो सत्तिं अणिगूहिय तं तवसा आजुत्तो ।
अर्थ - ( जो ) श्रमण (परिग्रहरूप में) मात्र देह ( रक्खे हुए है ) ( वह) देह से भी क्रियाओं को ममत्वरहित (होकर ) ( करता है) । (वही) (श्रमण) स्वयं की शक्ति को न छिपाकर उस (शक्ति) को तप में लगाता ( है ) / नियुक्त (करता है ) ।
( अप्प) 6 / 1
( सत्ति) 2/1
ममत्वरहित
क्रियाओं को
लगाता / नियुक्त
उसको
तप में
न छिपाकर
स्वयं की
शक्ति को
कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। ( हेम - प्राकृत - व्याकरण: 3-135)
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर तृतीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। ( हेम - प्राकृत - व्याकरण: 3-137 )
प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र - अधिकार