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तवो
तप
27. जस्स असणमप्पा तं पि तवो तप्पडिच्छगा समणा।
अण्णं भिक्खमणेसणमध ते समणा अणाहारा॥ जस्स
(जस्स-जेण) 6/1-3/1 चूँकि
तृतीयार्थक अव्यय अणेसणमप्पा [(अण)+(एसणं)+(अप्पा)] अण (अ) = नहीं
नहीं एसणं (एसणा) 2/1 इच्छा अप्पा (अप्प) 1/1
आत्मा अव्यय
इसलिए अव्यय
(तव) 1/1 तप्पडिच्छगा [(त) सवि-(प्पडिच्छग) उसका ग्रहण करनेवाले
1/2 वि] समणा (समण) 1/2
श्रमण . अण्णं (अण्ण) 2/1
अन्न को भिक्खमणेसणमध [(भिक्खं)+ (अणेसणं)+ (अध)]
भिक्खं (भिक्खा) 2/1-7/1 भिक्षा(आहार-प्रक्रिया) में अणेसणं (अणेसणा) 2/1 अनिच्छापूर्वक द्वितीयार्थक अव्यय अध (अ) = इसलिए
इसलिए (त) 1/2 सवि समणा (समण) 1/2
श्रमण अणाहारा
(अणाहार) 1/2 वि निराहारी ... अन्वय- जस्स अणेसणमप्पा तं पि तवो तप्पडिच्छगा समणा भिक्खमणेसणमध अण्णं ते समणा अणाहारा।
___ अर्थ- चूँकि (श्रमण की) आत्मा (पर द्रव्यरूप) (आहार की) इच्छा नहीं (करती है) इसलिए ही (वह) (अंतरंग) तप (कहा गया है) (उसी प्रकार) उस (आहार) का ग्रहण करनेवाले श्रमण भिक्षा (आहार प्रक्रिया) में अन्न को अनिच्छापूर्वक (ही) (ग्रहण करते हैं) इसलिए वे श्रमण निराहारी (कहे गये हैं)। (अतः यह भी अंतरंग तप है)। . 1. कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है।
(हेम -प्राकृत-व्याकरणः 3-134) कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है।
(हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) नोटः संपादक द्वारा अनूदित
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प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
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