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________________ 26. इहलोगणिरावेक्खो अप्पडिबद्धो परम्मि लोयम्हि। जुत्ताहारविहारो रहिदकसाओ हवे समणो।। इहलोगणिरावेक्खो [(इह) अ-(लोग)- इस लोक में (णिरावेक्ख) 1/1 वि] चाहरहित अप्पडिबद्धो (अप्पडिबद्ध) भूकृ 1/1 अनि नहीं बँधा हुआ. परम्मि (पर) 7/1+3/1 वि पर लोयम्हि (लोय) 7/1-3/1 लोक द्वारा जुत्ताहारविहारो (जुत्त) वि-(आहार)- युक्त आहार-विहार (विहार) 1/1] रहिदकसाओ [(रहिद) भूक अनि- कषाय त्याग दी गई (कसाअ) 1/1] हवे. (हव) व 3/1 अक समणो (समण) 1/1 श्रमण अन्वय- समणो हवे इहलोगणिरावेक्खो परम्मि लोयम्हि अप्पडिबद्धो जुत्ताहारविहारो रहिदकसाओ। अर्थ- (वह) श्रमण है (जो) इस लोक में चाहरहित (है), (जो) परलोक द्वारा बँधा हुआ नहीं (है), (जिसका) आहार-विहार युक्त (है) (तथा) (जिसके द्वारा) कषाय त्याग दी गई (है)। 1. कभी-कभी तृतीया विभक्ति के स्थान पर सप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-135) प्राकृत भाषाओंका व्याकरण, पिशल, पृ.सं.679/ 2. (36) प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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