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________________ 22. छेदो जेण ण विज्जदि गहणविसग्गेसु सेवमाणस्स। समणो तेणिह वट्टदु कालं खेत्तं वियाणित्ता।। छेदो संयम-भंग जिससे (छेद) 1/1 (ज) 3/1 सवि अव्यय (विज्ज) व 3/1 अक [(गहण)-(विसग्ग) 7/2] 5 विज्जदि गहणविसग्गेसु नहीं होता है स्वीकार करने और त्यागने में उपभोग करते हुए के श्रमण सेवमाणस्स समणो तेणिह (सेव) वकृ 6/1 . (समण) 1/1 [(तेण)+ (इह)] तेण (त) 3/1 सवि इह (अ) = (वट्ट) विधि 3/1 सक (काल) 2/1 (खेत्त) 2/1 (वियाण) संकृ उससे इस लोक में वट्टदु रहे कालं खेत्तं वियाणित्ता काल क्षेत्र जानकर अन्वय- सेवमाणस्स गहणविसग्गेसु जेण छेदो ण विज्जदि तेणिह समणो कालं खेत्तं वियाणित्ता वट्टदु। अर्थ- (परिग्रह का) उपभोग करते हुए (श्रमण) के (परिग्रह को) स्वीकार करने और त्यागने में जिस (परिग्रह) से (मूलगुणों का) संयम-भंग नहीं होता उस (परिग्रह) से (वह) श्रमण काल (और) क्षेत्र को जानकर इस लोक में (32) प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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