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21. किध तम्हि णत्थि मुच्छा आरंभो वा असंजमो तस्स।
तध परदव्वम्मि रदो कधमप्पाणं पसाधयदि।।
कैसे
किध तम्हि
णत्थि मुच्छा आरंभो
वा.
असंजमो
अव्यय (त) 7/1 सवि
उस (चाहयुक्त
परिग्रह) के होने पर अव्यय
नहीं है (मुच्छा ) 1/1
ममत्व भाव (आरंभ) 1/1
जीव-हिंसा अव्यय
तथा (असंजम) 1/1 वि असयम (त) 6/1 सवि
उसके अव्यय
इस प्रकार [(पर) वि-(दव्व) 7/1]
पर द्रव्यों में (रद) भूकृ 1/1 अनि अनुरक्त [(कधं)+ (अप्पाणं)] कधं (अ) = कैसे
कैसे अप्पाणं (अप्पाण) 2/1 आत्मा को (पसाधयदि) व 3/1 सक अनि प्राप्त करता है
तस्स
तध परदव्वम्मि
रदो
कधमप्पाणं
पसाधयदि
- अन्वय- तम्हि तस्स मुच्छा आरंभो वा असंजमो किध णत्थि तध परदव्वम्मि रदो कधमप्पाणं पसाधयदि। ..
अर्थ- उस (चाहयुक्त परिग्रह) के होने पर उस (श्रमण) के ममत्व भाव, जीव-हिंसा तथा (मूलगुणों में) असंयम कैसे नहीं है? इस प्रकार पर द्रव्यों में अनुरक्त (वह) (श्रमण) आत्मा को कैसे प्राप्त करेगा? 1. प्रश्नवाचक शब्दों के साथ वर्तमानकाल का प्रयोग प्रायः भविष्यत्काल के अर्थ में होता है।
प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
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