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20. ण हि णिरवेक्खो चागो ण हवदि भिक्खुस्स आसयविसुद्धी।
अविसुद्धस्स य चित्ते कहं णु कम्मक्खओ विहिओ।।
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अव्यय
नहीं
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णिरवेक्खो चागो
हवदि भिक्खुस्स आसयविसुद्धी
अव्यय
निश्चय ही (णिरवेक्ख) 1/1 वि अपेक्षा-रहित (चाग) 1/1
त्याग अव्यय
नहीं है (हव) व 3/1 अक होता है (भिक्खु) 6/1
श्रमण के [(आसय)-(विसुद्धि) 1/1] चित्त में विशुद्धता/
स्वच्छता (अविसुद्ध) 6/1-7/1 वि अविशुद्ध अव्यय
और (चित्त) 7/1
चित्त में
कैसे अव्यय
प्रश्नद्योतक [(कम्म)-(क्खअ) 1/1] कर्मों का अंत (विहिअ) भूकृ 1/1 अनि किया हुआ ।
अविसुद्धस्स य
चित्ते
श्री.
अव्यय
कम्मक्खओ विहिओ
अन्वय- भिक्खुस्स चागो णिरवेक्खो ण हवदि हि आसयविसुद्धी ण य अविसुद्धस्स चित्ते कम्मक्खओ कहं णु विहिओ।
अर्थ- (यदि) श्रमण के (परिग्रह का) त्याग अपेक्षा-रहित नहीं होता है (तो) निश्चय ही (उस श्रमण के) चित्त में विशुद्धता/स्वच्छता नहीं है और अविशुद्ध चित्त में कर्मों का अंत किया हुआ कैसे (माना जायेगा)? अर्थात् कर्मों का अंत नहीं हो सकता।
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प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार