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________________ 19. हवदि व ण हवदि बंधो मदम्हि जीवेऽध कायचे?म्हि। बंधो धुवमुवधीदो इदि समणा छड्डिया सव्वं ।। हवदि व नहीं हवदि बंधो मदम्हि जीवेऽध कायचेट्टम्हि बंधो धुवमुवधीदो (हव) व 3/1 अक होता है अव्यय अथवा • अव्यय (हव) व 3/1 अक होता है (बंध) 1/1 बंध (मद) भूकृ 7/1 अनि मरने पर [(जीवे) + (अध)] जीवे' (जीव) 7/1 जीवों के अध (अ) = और और [(काय)-(चेट्ठा)7/1+3/1] शरीर-चेष्टा से (बंध) 1/1 बंध [(धुवं)+(उवधीदो)] धुवं (अ) = निश्चित रूप से निश्चित रूप से उवधीदो (उवधि) 5/1 परिग्रह के कारण अव्यय अतः (समण) 1/2 श्रमणों ने (छड्ड) भूकृ 1/2 छोड़ दिया (सव्व) 2/1 सवि समस्त समणा छड्डिया सव्वं अन्वय- कायचेट्टम्हि जीवेऽध मदम्हि बंधो हवदि व ण हवदि धुवमुवधीदो बंधो इदि समणा सव्वं छड्डिया । __ अर्थ- (और) (श्रमण के) शरीर-चेष्टा से जीवों (त्रस-स्थावर) के मरने पर (कर्म) बंध होता है अथवा नहीं (भी) होता है। (किन्तु) परिग्रह के कारण निश्चित रूप से (कर्म) बंध (होता ही है)। अतः श्रमणों ने समस्त (अंतरंग व बाह्य परिग्रह) छोड़ दिया (है)। 1. 2... प्राकृत व्याकरण, पृष्ठ 49 कभी-कभी ‘आकारान्त' शब्दों के रूप तृतीया और पंचमी को छोड़कर ‘अकारान्त' की तरह चल जाते हैं। अभिनव प्राकृत व्याकरणः पृष्ठ 154 प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार (29)
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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