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________________ 18. अयदाचारो समणो छस्सु वि कायेसु वधकरो त्ति मदो। चरदि जदं जदि णिच्वं कमलं व जले णिरुवलेवो। अयदाचारो . (अयदाचार) 1/1 वि जागरूकता-रहित आचरणवाला श्रमण समणो छस्सु कायेसु वधकरो त्ति पादपूरक कायिक (जीवों) में मदो (समण) 1/1 (छस्सु) 7/2 वि अनि अव्यय (काय) 7/2 वि [(वधकरो)+ (इति)] वधकरो (वधकर) 1/1 वि इति (अ) = (मद) भूकृ 1/1 अनि (चर) व 3/1 सक (जदं) 2/1 द्वितीयार्थक अव्यय अव्यय अव्यय (कमल) 1/1 अव्यय (जल) 7/1 (णिरुवलेव) 1/1 वि हिंसा करनेवाला वाक्यार्थद्योतक माना गया आचरण करता है जागरूकतापूर्वक चरदि जदं जदि यदि सदैव णिच्वं कमलं कमल की तरह जल में अलिप्त जले णिरुवलेवो अन्वय- अयदाचारो समणो वि छस्सु कायेसु वधकरो त्ति मदो जदि जदं चरदि णिच्वं जले कमलं व णिरुवलेवो। ___ अर्थ- जागरूकता-रहित आचरणवाला श्रमण छ कायिक (जीवों) में (बाह्य हिंसा किये बिना भी) (अंतरंग) हिंसा करनेवाला माना गया (है)। यदि (श्रमण) जागरूकतापूर्वक आचरण करता है (और बाह्य हिंसा हो जाती है) (तो) (वह) सदैव जल में कमल की तरह अलिप्त (रहता है)। (28) प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
SR No.004160
Book TitlePravachansara Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages144
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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