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अपयत्ता वा चरिया सयणासणठाणचंकमादीसु। समणस्स सव्वकाले हिंसा सा संतत्तिय त्ति मदा।।
अपयत्ता
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चरिया सयणासणठाणचंकमादीसु
समणस्स सव्वकाले हिंसा सा संतत्तिय त्ति
(अपयत्ता) 1/1 वि जागरूकता-रहित अव्यय
पादपूरक (चरिया) 1/1
चर्या [(सयण)+(आसणठाणचंकम)+ (आदीसु)] [(सयण)-(आसण)-(ठाण)- सोने, बैठने,खड़े होने, (चंकम)-(आदि) 7/2] परिभ्रमण आदि में (समण) 6/1
श्रमण की [(सव्व) सवि-(काल) 7/1] सब काल में (हिंसा) 1/1
हिंसा (ता) 1/1 सवि [(संतत्ता)+ (इय) + (इति)] संतत्ता (संतत्ता) 1/1 वि निरन्तर इय (अ) = निश्चय ही निश्चय ही इति (अ) =
वाक्यार्थद्योतक (मदा) भूकृ 1/1 अनि मानी गई
वह
मदा
अन्वय- समणस्स अपयत्ता वा चरिया सयणासणठाणचंकमादीसु सव्वकाले सा संतत्तिय त्ति हिंसा मदा। ___अर्थ- श्रमण की जागरूकता-रहित चर्या (यदि) सोने, बैठने, खड़े होने, परिभ्रमण आदि (क्रियाओं में) सब काल में (होती है) (तो) वह निश्चय ही निरन्तर हिंसा मानी गई (है)।
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प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार