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15. भत्ते वा खमणे वा आवसधे वा पुणो विहारे वा।
उवधिम्हि वा णिबद्धं णेच्छदि समणम्हि विकधम्हि।।
의
खमणे
वा
आवसधे
विहारे
वा उवधिम्हि
(भत्त) 7/1
भोजन में अव्यय
अथवा (खमण) 7/1
उपवास में अव्यय
अथवा (आवसध) 7/1
आवास में अव्यय
अथवा अव्यय
पादपूरक (विहार) 7/1
विहार में अव्यय
अथवा । (उवधि) 7/1
परिग्रह में अव्यय
अथवा (णिबद्ध) 2/1 वि बँधे हुए/ममता युक्त [(ण)+(इच्छदि)] ण (अ) = नहीं
नहीं इच्छदि (इच्छ) व 3/1 सक स्वीकार करती है (समण) 7/1
(अन्य) श्रमण में (विकधा)1 7/1
विकथा में
णिबद्ध णेच्छदि
समणम्हि विकधम्हि
अन्वय- भत्ते वा खमणे वा आवसधे वा पुणो विहारे वा उवधिम्हि वा समणम्हि विकधम्हि णिबद्धं णेच्छदि।
अर्थ- (परिपूर्ण श्रमणता) भोजन में अथवा उपवास में अथवा आवास में अथवा विहार में अथवा (शरीररूप) परिग्रह में अथवा (अन्य) श्रमण में (अथवा) विकथा में बँधे हुए/ममता युक्त (श्रमण) को स्वीकार नहीं करती है।
1.
कभी-कभी ‘आकारान्त' शब्दों के रूप तृतीया और पंचमी को छोड़कर 'अकारान्त' की तरह चल जाते हैं। अभिनव प्राकृत व्याकरणः पृष्ठ 154
प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
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