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14. चरदि णिबद्धो णिच्चं समणो णाणम्मि दंसणमुहम्मि।
पयदो मूलगुणेसु य जो सो पडिपुण्णसामण्णो।।
चरदि
आचरण करता है संबद्ध
णिबद्धो
णिच्चं
(चर) व 3/1 सक (णिबद्ध) 1/1 वि अव्यय (समण) 1/1 (णाण) 7/1 [(दंसण)-(मुह) 7/1]
समणो
सदैव श्रमण ज्ञान में
णाणम्मि दंसणमुहम्मि
आत्मस्मरण की दिशा
जागरूक हुआ
मूलगुणों में
और
पयदो (पयद) भूकृ 1/1 अनि मूलगुणेसु (मूलगुण) 7/2
अव्यय (ज) 1/1 सवि
(त) 1/1 सवि पडिपुण्णसामण्णो [(पडिपुण्ण) भूकृ अनि
(सामण्ण) 1/1]
जो
वह परिपूर्ण श्रमणता
अन्वय- जो समणो णिच्चं दसणमुहम्मि णाणम्मि णिबद्धो य मूलगुणेसु पयदो चरदि सो पडिपुण्णसामण्णो।
अर्थ- जो श्रमण सदैव आत्मस्मरण की दिशा में (तथा) ज्ञान में संबद्ध (है) और मूलगुणों में जागरूक हुआ आचरण करता है, वह परिपूर्ण श्रमणता (प्राप्त किया हुआ है)। 1. कोश में सामण्ण' शब्द नपुंसकलिंग दिया गया है, किन्त यहाँ ‘सामण्ण' शब्द का प्रयोग
पुलिंग में किया गया है।
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प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार