________________
13. अधिवासे व विवासे छेदविहूणो भवीय सामण्णे।
समणो विहरदु णिच्चं परिहरमाणो णिबंधाणि।।
अधिवासे
. (अधिवास) 7/1
(गुरु के ) पास में हो
अथवा
अव्यय (विवास) 7/1
विवासे
छेदविहूणो भवीय-भविय
(गुरु से) दूर हो संयम-भंग-रहित होकर श्रमण अवस्था में
सामण्णे
श्रमण
समणो विहरदु
[(छेद)-(विहूण) 1/1 वि] (भव) संकृ (सामण्ण) 7/1 (समण) 1/1 (विहर) विधि 3/1 अक अव्यय (परिहर) वकृ 1/1 (णिबंध) 2/2
रहे |
णिच्चं
सदैव
परिहरमाणो णिबंधाणि
टालता हुआ संबंधों/संयोगो को
अन्वय- सामण्णे छेदविहूणो भवीय समणो अधिवासे व विवासे णिच्चं णिबंधाणि परिहरमाणो विहरदु।
अर्थ- श्रमण अवस्था में संयम-भंग-रहित होकर (वह) श्रमण (गुरु के) पास में हो अथवा (गुरु से) दूर (अकेला) हो, सदैव (जन) संबंधों/संयोगो को टालता हुआ रहे।
प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार