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आदाय तं पि लिंगं गुरुणा परमेणं तं णमंसित्ता। सोच्चा सवदं किरियं उवविदो होदि सो समणो।।
आदाय
ग्रहण करके उसको
.
क
ही
र
लिंग
गुरुणा परमेणं
गुरु से
णमंसित्ता
(आदा) संकृ (त) 2/1 सवि अव्यय (लिंग) 2/1 (गुरु) 3/1 (परम) 3/1 वि (त) 2/1 सवि (णमंस) संकृ (सोच्चा) संकृ अनि (सवदा) 2/1 वि (किरिया) 2/1 (उवट्टिद) भूक 1/1 अनि (हो) व 3/1 अक (त) 1/1 सवि (समण) 1/1
सोच्चा
उत्कृष्ट उसको नमस्कार करके सुनकर व्रत-सहित क्रिया को तत्पर होता है
सवदं किरियं
उवविदो
होदि
वह श्रमण
समणो
. अन्वय- परमेणं गुरुणा तं लिंगं आदाय पि तं णमंसित्ता सवदं किरियं सोच्चा सो समणो उवट्ठिदो होदि।
अर्थ- उत्कृष्ट गुरु (आचार्य) से उस लिंग (भेष) को ग्रहण करके ही उन (आचार्य) को नमस्कार करके व्रत (पाँच महाव्रत) सहित क्रिया को सुनकर वह श्रमण (व्रत पालन में) तत्पर होता है।
प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
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