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जुत्तं
लिंग
(जुत्त) 1/1 वि
युक्त ... उवजोगजोगसुद्धीहिं [(उवजोग)-(जोग)- भावों और क्रियाओं (सुद्धि) 3/2]
की निर्मलता से (लिंग) 1/1
लिंग (भेष) अव्यय परावेखं
(परावेक्ख) 1/1 वि पर की चाह रखनेवाला अपुणब्भवकारणं [(अपुणब्भव)-(कारण) 1/1] मोक्ष का कारण जेण्हं (जेण्ह) 1/1 वि जिन
नहीं
अन्वय- जेण्ह लिंगं हवदि जधजादरूवजादं उप्पाडिदकेसमंसुगं सुद्धं हिंसादीदो रहिदं अप्पडिकम्मं लिंगं अपुणब्भवकारणं मुच्छारंभविमुक्कं उवजोगजोगसुद्धीहिं जुत्तं परावेक्खं ण।
अर्थ- (मोक्ष के साधक का) (जो) (बाह्य) जिन लिंग (भेष) होता है (वह) जैसा जन्म हुआ उसी के अनुरूप शरीर रखा हुआ, दाढी-मूंछ व बाल लोंच किया हुआ, शरीर के दोष से मुक्त, हिंसा वगैरह से रहित, (किसी भी प्रकार के) शारीरिक शृंगार से वियुक्त (होता है) (तथा) (जो) (अंतरंग) (जिन) लिंग (भेष) है, (वह) मोक्ष का कारण (है) ममत्व बुद्धि एवं सांसारिक क्रियाओं से मुक्त (है), भावों और क्रियाओं की निर्मलता से युक्त (है) (तथा) पर की चाह रखनेवाला नहीं (होता है)।
नोटः
संपादक द्वारा अनूदित
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प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार