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जधजादरूवजादं उप्पाडिदकेसमंसुगं सुद्ध। रहिदं हिंसादीदो अप्पडिकम्मं हवदि लिंग।। मुच्छारंभविमुक्कं जुत्तं उवजोगजोगसुद्धीहिं। लिंगंण परावेक्खं अपुणब्भवकारणं जेण्हं।।
जधजादरूवजादं [(जध) अ-(जाद) भूक - जैसा जन्म हुआ उसी (रूव)-(जाद) भूकृ 1/1] के अनुरूप शरीर को
रखा हुआ उप्पाडिदकेसमंसुगं [(उप्पाडिद) भूकृ-(केस)- दाढी-मूंछ व बाल (मंसुग) 1/1]
लोंच किया हुआ 'ग' स्वार्थिक सुद्धं (सुद्ध) 1/1 वि
शरीर के दोष से मुक्त रहिदं. (रहिद) 1/1 वि
रहित हिंसादीदो [(हिंसा)+(आदीदो)]
हिंसा (हिंसा) 1/1 हिंसा
आदीदो (आदि) 5/2 वगैरह से अपडिकम्म (अपडिकम्म) 1/1 वि शारीरिक शृंगार से
वियुक्त हवदि
(हव) व 3/1 अक होता है लिंगं . (लिंग) 1/1
जिन लिंग (भेष) मुच्छारंभविमुक्कं [(मुच्छा)+ (आरंभविमुक्क)]
[(मुच्छा)-(आरंभ)- ममत्व बुद्धि एवं (विमुक्क) भूकृ 1/1 अनि] सांसारिक क्रियाओं से
मुक्त
प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार
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