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4.
णाहं होमि परेसिंण मे परे णत्थि मज्झमिह किंचि। इदि णिच्छिदो जिदिंदो जादो जधजादरूवधरो।।
णाहं
होमि
परेसिं
नहीं
मे
णत्थि मज्झमिह
[(ण)+ (अहं)] ण (अ) = नहीं
नहीं अहं (अम्ह) 1/1 सवि (हो) व 1/1 अक होता हूँ (पर) 6/2 वि
पर का अव्यय (अम्ह) 6/1 सवि (पर) 1/2 वि अव्यय
नहीं हैं [(मज्झं)+ (इह)] मज्झं (अम्ह) 6/1 सवि मेरा इह (अ) = इस लोक में अव्यय
कुछ भी अव्यय
इस प्रकार (णिच्छिद) भूकृ 1/1 अनि । निर्णय किया हुआ । (जिदिंद) 1/1 वि इन्द्रियों को जीतनेवाला (जाद) भूकृ 1/1
बना [(जध) अ-(जाद) भूकृ- जैसा जन्म हुआ उसी (रूव)-(धर) 1/1 वि] के अनुरूप शरीर को
रखनेवाला
इस लोक में
किंचि
इदि
णिच्छिदो जिदिंदो जादो जधजादरूवधरो
अन्वय- णाहं परेसिं होमि परे मे ण इह मज्झं किंचि णत्थि इदि णिच्छिदो जिदिंदो जधजादरूवधरो जादो।
अर्थ- मैं पर का नहीं हूँ (और) पर मेरे नहीं हैं। (इसलिये) इस लोक में मेरा कुछ भी नहीं है। इस प्रकार निर्णय किया हुआ (साधु) इन्द्रियों को जीतनेवाला (होकर) जैसा जन्म हुआ उसी के अनुरूप शरीर को रखनेवाला बना।
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प्रवचनसार (खण्ड-3) चारित्र-अधिकार