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77. कम्मत्तणपाओग्गा खंधा जीवस्स परिणई पप्पा।
गच्छंति कम्मभावं ण हि ते जीवेण परिणमिदा।।
कर्मत्व के योग्य
स्कंध
कम्मत्तणपाओग्गा [(कम्मत्तण)-(पाओग्ग)
1/2 वि] खंधा
(खंध) 1/2 जीवस्स (जीव) 6/1 परिण (परिणइ) 2/1 पप्पा
(पप्प) भूकृ 1/2 अनि गच्छंति (गच्छ) व 3/2 सक कम्मभावं [(कम्म)-(भाव) 2/1]
अव्यय अव्यय
(त) 1/2 सवि जीवेण (जीव) 3/1 परिणमिदा (परिणमिद) भूकृ 1/2
जीव का परिणमन होने पर उपलब्ध प्राप्त हो जाते हैं कर्मरूप में
नहीं
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परन्तु
जीव के द्वारा परिणमन कराये गये
अन्वय- कम्मत्तणपाओग्गा पप्पा खंधा जीवस्स परिणइं कम्मभावं गच्छंति हि ते जीवेण ण परिणमिदा।।
अर्थ- कर्मत्व के योग्य उपलब्ध स्कंध जीव का (रागद्वेषात्मक) परिणमन होने पर कर्मरूप में प्राप्त हो जाते हैं, परन्तु वे जीव के द्वारा परिणमन नहीं कराये गये (हैं) अर्थात् वे स्वयं ही कर्मरूप में बदल जाते हैं।
1.
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137)
(92)
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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