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76. ओगाढगाढणिचिदो पुग्गलकायेहिं सव्वदो लोगो।
सुहुमेहि बादरेहि य अप्पाओग्गेहिं जोगेहिं।।
सव्वदो
ओगाढगाढणिचिदो [(ओगाढ) वि-(गाढ). अ- गहरा, अत्यन्त
(णिचिद) भूकृ 1/1 अनि] भरा हुआ पुग्गलकायेहिं [(पुगल)-(काय) 3/2] पुद्गलराशि से
(सव्वदो) अव्यय सब ओर से
पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय लोगो (लोग) 1/1
लोक सुहुमेहि (सुहुम) 3/2 वि
सूक्ष्म बादरेहि (बादर) 3/2 वि स्थूल य
अव्यय अप्पाओग्गेहिं [(अप्प) (अओग्ग)] आत्मा के लिये
[(अप्प)-(अओग्ग) 3/2 वि] अयोग्य जोग्गेहिं (जोग्ग) 3/2 वि योग्य
और
__ अन्वय- अप्पाओग्गेहिं जोग्गेहिं सुहुमेहि य बादरेहि पुग्गलकायेहिं लोगो सव्वद्रो ओगाढगाढणिचिदो।
अर्थ- आत्मा के लिये (कर्मरूप होने के) अयोग्य (और) (कर्मरूप होने के) योग्य सूक्ष्म और स्थूल पुद्गलराशि से (यह) लोक सब ओर से अत्यन्त गहरा भरा हुआ (है)।
पाइयसद्दमहण्णव कोश में इसे क्रिविअ भी बताया गया है।
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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