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70. णाहं पोग्गलमइओ ण ते मया पोग्गला कया पिंडं।
तम्हा हि ण देहोऽहं कत्ता वा तस्स देहस्स।।
णाहं
पोग्गलमइओ
ते
पुद्गल
मया पोग्गला कया पिंडं तम्हा
[(ण)+ (अहं)] ण (अ) = न अहं (अम्ह) 1/1 स मैं [(पोग्गल)-(मइअ) 1/1 वि] पुद्गलमय अव्यय
नहीं (त) 1/2 सवि (अम्ह) 3/1 स अनि
मेरे द्वारा (पोग्गल) 1/2 . (कय) भूकृ 1/2 अनि किये गये (पिंड) 2/1
समूह में अव्यय
इसलिए अव्यय
निश्चय ही अव्यय
नहीं [(देहो) (अहं)] देहो (देह) 1/1
शरीर अहं (अम्ह) 1/1 स (कत्तु) 1/1 वि
कर्ता अव्यय
अथवा (त) 6/1 सवि
उस (देह) 6/1
शरीर का
देहोऽहं
कत्ता
वा तस्स देहस्स
अन्वय- अहं पोग्गलमइओ ण मया ते पोग्गला पिंडं ण कया तम्हा हि देहोऽहं ण वा तस्स देहस्स कत्ता।
अर्थ- मैं पुद्गलमय नहीं (हँ)। मेरे द्वारा वे पुद्गल समूह में नहीं किये गये (हैं)। इसलिए निश्चय ही मैं शरीर नहीं (हूँ) अथवा उस शरीर का कर्ता (भी) (नहीं हूँ)।. 1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है।
(हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137)
प्रवचनसार (खण्ड-2)
(85)
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