SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 85
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 63. अप्पा उवओगप्पा उवओगोणाणसणं भणिदो। सो वि सुहो असुहो वा उवओगो अप्पणो हवदि।। अप्पा (अप्प) 1/1 (उवओगप्प) 1/1 वि उवओगप्पा उवओगो (उवओग) 1/1 आत्मा उपयोगस्वरूपवाला/ चैतन्यस्वरूपवाला उपयोग (चेतनायुक्त भावात्मकता) ज्ञान-दर्शन कहा गया णाणदसणं भणिदो . . . [(णाण)-(दसण) 1/1] . (भण-भणिद) भूकृ 1/1 (त) 1/1 सवि अव्यय (सुह) 1/1 वि , (असुह) 1/1 वि अव्यय (उवओग) 1/1 (अप्प) 6/1 (हव) व 3/1 अक असुहो वा भी . शुभ अशुभ अथवा उपयोग आत्मा का होता है उवओगो अप्पणो हवदि अन्वय- अप्पा उवओगप्पा हवदि उवओगो णाणदंसणं अप्पणो सो उवओगो सुहो वा असुहो वि भणिदो। अर्थ- आत्मा उपयोगस्वरूपवाला/चैतन्यस्वरूपवाला होता है। उपयोग ज्ञान-दर्शन (है)। (तथा) आत्मा का वह उपयोग (चेतनायुक्त भावात्मकता) शुभ अथवा अशुभ भी कहा गया (है)। (78) प्रवचनसार (खण्ड-2) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy