SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 82
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 60. अत्थित्तणिच्छिदस्स हि अत्थस्सत्थंतरम्मि संभूदो। अत्थो पज्जाओ सो संठाणादिप्पभेदेहिं।। + 40 अत्थित्तणिच्छिदस्स [(अत्थित्त)-(णिच्छिद) निश्चित अस्तित्ववाले 6/1 वि हि अव्यय (त) 1/1 सवि अत्थस्सत्यंतरम्मि [(अत्थस्स)+ (अत्यंतरम्मि)] अत्थस्स (अत्थ) 6/1 जीव की अत्यंतरम्मि (अत्यंतर) 7/1 परिवर्तनरूप में (संभूद) भूकृ 1/1 अनि उत्पन्न हुई अत्थो (अत्थ) 1/1 पज्जाओ (पज्जाअ) 1/1 . (त) 1/1 सवि वह संठाणादिप्पभेदेहिं [(संठाण)+(आदिप्पभेदेहिं)] ... [(संठाण)-(आदि)- शरीर आकार तथा . (प्पभेद) 3/2] .. अन्य भेदों से युक्त संभूदो जीव पर्याय ____अन्धय- अत्थित्तणिच्छिदस्स अत्थस्स हि अत्यंतरम्मि संभूदो अत्थो सो संठाणादिप्पभेदेहिं पज्जाओ। ___ अर्थ- निश्चित अस्तित्ववाले जीव की (कर्म पुद्गल के संसर्ग से) परिवर्तनरूप में उत्पन्न हुई (जो) जीव (पर्याय) (है) वह ही शरीर आकार तथा अन्य भेदों से युक्त (जीव की) (नर, नारकी आदि) पर्याय (है)। प्रवचनसार (खण्ड-2) (75) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy