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________________ 58. आदा कम्ममलिमसो धरेदि पाणे पुणो पुणो अण्णे। ___ण चयदि जाव ममत्तं देहपधाणेसु विसयेसु।। आदा कम्ममलिमसो धरेदि पाणे पुणो पुणो अण्णे दूसरे (आद) 1/1 आत्मा [(कम्म)-(मलीमस-मलिमस)कर्मों से मलिन 1/1 वि] (धर) व 3/1 सक धारण करता है (पाण) 2/2 प्राणों को अव्यय बार-बार (अन्य) 2/2 सवि अव्यय नहीं (चय) व 3/1 सक छोड़ता है अव्यय जबतक (ममत्त) 2/1 [(देह)-(पधाण) 7/2 वि] देह में मुख्यरूप से अन्तर्हित (विसय) 7/2 इन्द्रिय विषयों में चयदि जाव ममत्तं देहपधाणेसु ममत्व विसयेसु अन्वय- कम्ममलिमसो आदा पुणो पुणो अण्णे पाणे धरेदि जाव देहपधाणेसु विसयेसु ममत्तं ण चयदि। ___ अर्थ- कर्मों से मलिन आत्मा बार-बार दूसरे प्राणों को धारण करता है जबतक (वह) देह में मुख्यरूप से अन्तर्हित (देह पर मुख्यरूप से आधारित) इन्द्रिय विषयों में ममत्व नहीं छोड़ता है। प्रवचनसार (खण्ड-2) (73) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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