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________________ 55. पाणेहिं चदुहिं जीवदि जीवस्सदि जो हि जीविदो पुव्वं । पाणा पोग्गलदव्वेहिं णिव्वत्ता ।। सो जीवो ते पाणेहिं चदुहिं जीवदि जीवस्सदि जो हि जीविदो पुव्वं सो जीवो ते पाणा पोग्गलदव्वेहिं णिव्वत्ता (70) (पाण) 3/2 (चदु) 3 / 2 वि (जीव) व 3 / 1 सक (जीव ) भवि 3 / 1 सक (ज) 1 / 1 सवि अव्यय ( जीव -- जीविद ) भूकृ 1 / 1 जीया अव्यय (त) 1/1 सवि (जीव) 1/1 (त) 1/2 सवि (पाण) 1 / 2 [ ( पोग्गल ) - ( दव्व ) 3/2] (णिव्वत्त) भूक 1/2 अनि जीवो ते पाणा पोग्गलदव्वेहिं णिव्वत्ता । प्राणों से चार जीता है जयेगा जो निश्चय ही Jain Education International विगत काल में वह जीव अन्वय- जो हि चदुहिं पाणेहिं जीवदि जीवस्सदि पुव्वं जीविदो सो to प्राण पुद्गल द्रव्यों से निष्पन्न अर्थ - जो निश्चय ही चार प्राणों से जीता है, जीवेगा, विगतकाल में जीया (है) वह जीव (द्रव्य है) (और) वे (चारों ) प्राण पुद्गल द्रव्यों से निष्पन्न (है)। प्रवचनसार (खण्ड-2) For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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