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52. जस्स ण संति पदेसा पदेसमेत्तं तु तच्चदो णाएं।
सुण्णं जाण तमत्थं अत्यंतरभूदमत्थीदो।।
जस्स
ण
संति
जिस (द्रव्य) के नहीं होते हैं अनेक प्रदेश प्रदेशमात्र
और
यथार्थरूप से
(ज) 6/1 सवि अव्यय
(संति) व 3/2 अक अनि पदेसा
(पदेस) 1/2 पदेसमेत्तं (पदेसमेत्त) 1/1 वि
अव्यय तच्चदो
(तच्चदो) अव्यय.
पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय णाएं
(णा) हेकृ सुण्णं
(सुण्ण) 2/1 वि जाण
(जाण) विधि 2/1 सक तमत्थं [(तं)+(अत्थं)]
तं (त) 2/1 सवि
अत्थं (अत्थ) 2/1 अत्यंतरभूदमत्थीदो [(अत्यंतरभूदं)+ (अत्थीदो)]
[(अत्यंतर)-(भूद) भूकृ 1/1] अत्थीदो (अत्थि) 5/1
जानने के लिए शून्य जानो
उस
द्रव्य को
विपरीत अर्थ लिये हुए
अस्तित्व से
अन्वय- जस्स पदेसा ण संति तु पदेसमेत्तं तच्चदो णादं तमत्थं . सुण्णं जाण अत्थीदो अत्यंतरभूदं।
अर्थ- जिस (द्रव्य) के अनेक प्रदेश नहीं हैं, और (एक) प्रदेशमात्र भी यथार्थरूप से जानने के लिए (नहीं है) (तो) उस द्रव्य को (तुम) शून्य (अस्तित्व रहित) जानो (क्योंकि) (वह) अस्तित्व (उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य) से विपरीत अर्थ लिये हुए (कोई वस्तु है) अर्थात् ऐसी कोई वस्तु नहीं हो सकती है।
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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