________________
42.
कालस्स वट्टणा से गुणोवओगो त्ति अप्पणो भणिदो। णेया संखेवादो गुणा हि मुत्तिप्पहीणाणं।।
कालस्स
वट्टणा
से गुणोवओगो त्ति
अप्पणो भणिदो
(काल) 6/1
काल का (वट्टणा) 1/1
परिणमन में कारण अव्यय
वाक्यालंकार [(गुण)+ (उवओगो)+(इति)] [(गुण)-(उवओग) 1/1] गुण, उपयोग इति (अ) = निश्चय ही निश्चय ही (अप्प) 6/1 .
आत्मा का (भण→भणिद) भूक 1/1 कहा गया (णेय) विधिकृ 1/2 अनि समझे जाने चाहिये (संखेव) 5/1
संक्षेप से (गुण) 1/2
गुण अव्यय [(मुत्ति)-(प्पहीण) 6/2 वि] मूर्ति-रहित
णेया
संखेवादो
गुणा
मुत्तिप्पहीणाणं
अन्वय- कालस्स वट्टणा से अप्पणो गुणोवओगो त्ति भणिदो संखेवादो हि गुणा मुत्तिप्पहीणाणं णेया।
अर्थ- (तथा) काल (द्रव्य) का (गुण) परिणमन में कारण है। आत्मा का गुण निश्चय ही उपयोग (चेतनायुक्त भावात्मकता) कहा गया (है)। संक्षेप से (ये) ही गुण मूर्तिरहित (अमूर्त) (द्रव्यों) के समझे जाने चाहिये।
प्रवचनसार (खण्ड-2)
___(57)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org