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वण्णरसगंधफासा विज्जंते पोग्गलस्स सुहमादो। पुढवीपरियंतस्स य सद्दो सो पोग्गलो चित्तो।
वण्णरसगंधफासा
विज्जते पोग्गलस्स सुहुमादो पुढवीपरियंतस्स
[(वण्ण)-(रस)-(गंध)- (फास) 1/2] (विज्ज) व 3/2 अक (पोग्गल) 6/1 (सुहुम) 5/1 वि [(पुढवि)-(परियंत) 6/1] अव्यय (सद्द) 1/1 (त) 1/1 सवि (पोग्गल) 1/1 (चित्त) 1/1 वि
वर्ण, रस, गंध
और स्पर्श विद्यमान होते हैं पुद्गल में सूक्ष्म से महास्थूल तक के
और
शब्द
मो
वह
पुद्गल
पोग्गलो चित्तो
अनेक प्रकार का
अन्वय- सुहुमादो पुढवीपरियंतस्स पोग्गलस्स वण्णरसगंधफासा विज्जते य चित्तो सद्दो सो पोग्गलो।
अर्थ- सूक्ष्म (पुद्गल परमाणु) से महास्थूल तक के पुद्गल (द्रव्य) में वर्ण, रस, गंध और स्पर्श (गुण) विद्यमान होते हैं, और (जो) अनेक प्रकार का (ध्वनि उत्पादक) शब्द (है) अर्थात् अनेक प्रकार की ध्वनि (है) वह पुद्गल (पर्याय) (है) (न कि पुद्गल का गुण)।
1. कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है।
(हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134) प्रवचनसार (खण्ड-2)
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