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38. लिंगेहिं जेहिं दव्वं जीवमजीवं च हवदि विण्णादं।
तेऽतब्भावविसिट्ठा मुत्तामुत्ता गुणा णेया।।
लक्षणों से जिन द्रव्य
दव्वं
लिंगेहि (लिंग) 3/2 जेहिं
(ज) 3/2 सवि
(दव्व) 1/1 जीवमजीवं [(जीव)+(अजीवं)]
जीवं (जीव) 1/1 अजीवं (अजीव) 1/1 वि
अव्यय हवदि (हव) व 3/1 अक विण्णादं (विण्णाद) भूकृ 1/1 अनि तेऽतब्भावविसिट्ठा [(ते)+(अतब्भावविसिट्ठा)]
. [(ते)-(अतब्भाव)-
(विसिट्ठ) भूकृ 1/2 अनि] मुत्तामुत्ता.. [(मुत्त)+(अमुत्ता)]
[(मुत्त)-(अमुत्त) 1/2 वि] गुणा
(गुण) 1/2 णेया ... (णेय) विधिकृ 1/2 अनि
जीव जीव से वियुक्त/रहित
और होता है ज्ञात
वे भिन्न लक्षणों से युक्त
मूर्त और अमूर्त
समझे जाने चाहिये
अन्वय- जेहिं लिंगेहिं जीवं च अजीवं दव्वं विण्णादं हवदि तेऽतब्भावविसिट्ठा मुत्तामुत्ता गुणा णेया।
अर्थ- जिन लक्षणों से जीव और जीव से वियुक्त/रहित द्रव्य ज्ञात होते हैं, वे भिन्न लक्षणों से युक्त मूर्त और अमूर्त गुण समझे जाने चाहिये।
प्रवचनसार (खण्ड-2)
(53)
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