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37. उप्पादट्ठिदिभंगा पोग्गलजीवप्पगस्स लोगस्स।
परिणामादो जायंते संघादादो व भेदादो।।
उप्पादद्विदिभंगा
[(उप्पाद)-(द्विदि)-(भंग)
1/2]
उत्पाद, स्थिति
और नाश पुद्गल और जीव से संबंधित लोक में परिणमन से
पोग्गलजीवप्पगस्स' [(पोग्गल)-(जीवप्पग)।
6/1 वि] लोगस्स (लोग) 6/1 परिणामादो (परिणाम) 5/1 जायते
(जा) व 3/2 अक
'य' विकरण संघादादो
(संघाद) 5/1
अव्यय भेदादो (भेद) 5/1
उत्पन्न होते हैं
संयोजन से
और वियोजन से
अन्वय- पोग्गलजीवप्पगस्स लोगस्स परिणामादो संघादादो व भेदादो उप्पाददिदिभंगा जायते।
अर्थ- पुद्गल और जीव से संबंधित लोक में परिणमन से, संयोजन से और वियोजन से उत्पाद, स्थिति (ध्रौव्य) और नाश (व्यय) उत्पन्न होते हैं अर्थात् पुद्गल और जीव में उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य दो प्रकार से होते हैं-(1) परिणमन से (2) संयोजन और वियोजन से। उदाहरणार्थ- (1) बाल्यावस्था, युवावस्था
और वृद्धावस्था में पुद्गल-जीव में परिणमन से उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य होता है। (2) लोक में विभिन्न प्रकार के जीवों के संयोजन और वियोजन से तथा पुद्गल परमाणुओं के आपस में संयोजन और वियोजन से उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य होता
1.
कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर षष्ठी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-134) सम्पादक द्वारा अनूदित
नोटः
(52)
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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