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28. तम्हा दुणत्थि कोई सहावसमवट्ठिदो त्ति संसारे।
संसारो पुण किरिया संसरमाणस्स दव्वस्स।।
इस कारण ही नहीं है
कोई
स्वभाव में अवस्थित
तम्हा दु
अव्यय णत्थि
अव्यय कोई-कोई अव्यय सहावसमवट्टिदो त्ति [(सहावसमवट्टिदो)+ (इति)]
[(सहाव)-(समवट्ठिद) भूक 1/1 अनि]
इति (अ) = पादपूरक संसारे (संसार) 7/1 . संसारो
(संसार) 1/1 पुण
अव्यय . किरिया (किरिया) 1/1 संसरमाणस्स (संसर) वकृ 6/1 दव्वस्स (दव्व) 6/1
पादपूरक संसार में
संसार
और क्रिया
परिभ्रमण करते हुए द्रव्य की
- अन्वय- तम्हा दु. संसारे कोई सहावसमवट्ठिदो त्ति णत्थि पुण संसरमाणस्स दव्वस्स किरिया संसारो।
अर्थ- इस कारण ही संसार में कोई (भी) (जीव) स्वभाव में अवस्थित नहीं है और परिभ्रमण करते हुए (चारों गतियों में भ्रमण करते हुए) (जीव) द्रव्य की क्रिया (ही) संसार (है)।
1.
यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु इ-ई किया गया है।
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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