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· 27. जायदि णेव ण णस्सदि खणभंगसमुब्भवे जणे कोई।
जो हि भवो सो विलओ संभवविलय त्ति ते णाणा।
जायदि
उत्पन्न होता है
णेव
न ही
णस्सदि खणभंगसमुब्भवे
जणे
कोई-कोई
Fg
(जा) व 3/1 अक 'य'विकरण अव्यय अव्यय (णस्स) व 3/1 अक [(खण)-(भंग)(समुब्भव) 7/1 वि] (जण) 7/1 अव्यय (ज) 1/1 सवि अव्यय (भव) 1/1 (त) 1/1 सवि (विलअ) 1/1 [(संभवविलया)+ (इति) [(संभव)-(विलय) 1/2] इति (अ) = इस प्रकार (त) 1/1 सवि अव्यय
नष्ट होता है क्षण में विनाश और उत्पन्न होनेवाले लोक में कोई . जो .. निश्चय ही उत्पत्ति वह विनाश
विलओ संभवविलय त्ति
उत्पत्ति और नाश इस प्रकार
णाणा
अनेक
अन्वय- खणभंगसमुब्भवे जणे कोई णेव जायदि ण णस्सदि जो भवो सो हि विलओ ते संभवविलय त्ति णाणा।
अर्थ- क्षण में विनाश और उत्पन्न होनेवाले (इस) लोक में कोई (भी) (द्रव्य) न ही उत्पन्न होता है (और) न नष्ट होता है अर्थात् इन दोनों अवस्थाओं में द्रव्य नित्य ही है। (इस लोक में) जो (पर्याय)उत्पत्ति (रूप) (है) वह निश्चय ही विनाश (रूप) (है)। इस प्रकार वे उत्पत्ति (उत्पाद) और नाश (व्यय) अनेक (हैं) अर्थात् पर्यायार्थिक दृष्टि की अपेक्षा उत्पाद और व्यय अनेक हैं।
1.
यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु इ-ई किया गया है।
(42)
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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