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________________ 24. सो णत्थि कोई' कोइ ण णत्थि किरिया सहावणिव्वत्ता किरिया हि णत्थि Arc - अफला धम्मो दि णिप्फलो परमो एसो त्ति णत्थि कोई ण णत्थि किरिया सहावणिव्वत्ता । किरिया हि णत्थि अफला धम्मो जदि णिप्फलो परमो ।। नोट: [(एसो) + (इति)] एसो (एत) 1/1 सवि इति (अ) = क्योंकि अव्यय अव्यय अव्यय (fanften) 1/1 [(सहाव) - (णिव्वत्त) भूकृ 1/1 अनि] ( किरिया ) 1/1 अव्यय अव्यय (अफल) 1 / 1 वि (धम्म ) 17 1 अव्यय प्रवचनसार ( खण्ड - 2) Jain Education International (णिप्फल) 1/1 वि (परम) 1 / 1 वि सम्पादक द्वारा अनूदित यह क्योंकि अन्वय एसो त्ति कोई णत्थि सहावणिव्वत्ता किरिया ण णत्थि जदि परमो धम्मो णिप्फलो किरिया हि अफला णत्थि । अर्थ - ( कहना कि ) 'यह' (नित्य है) (किन्तु) कोई (मनुष्यादि पर्याय) (नित्य) नहीं है क्योंकि ( इन पर्यायों के) स्वरूप से उत्पन्न ( राग-द्वेषात्मक) क्रिया सदा (ही) (है)। (अब) यदि परमधर्म ( वीतराग भाव से उत्पन्न क्रिया) (संसारी) फलरहित ( है ) (तो) (राग-द्वेषात्मक) क्रिया निश्चय ही ( संसारी) फलरहित नहीं (हो सकती) है। For Personal & Private Use Only नहीं है कोई सदा क्रिया स्वरूप से उत्पन्न क्रिया निश्चय ही नहीं है फलरहित धर्म यदि फलरहित परम (39) www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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