________________
अन्वय- दव्वं केण पज्जायेण अत्थि त्ति य णत्थि त्ति अवत्तव्वमिदि हवदि पुणो तदुभयं दु वा अण्णं वि आदिट्ठ।
अर्थ- (अतः) द्रव्य किसी प्रकार से (द्रव्यार्थिकनय से) ‘अस्ति' ही (है) और (द्रव्य) (किसी प्रकार से) (पर्यायार्थिकनय से) नास्ति' ही (है) अर्थात् वह द्रव्य पर्याय से एकरूप होने के कारण पर्यायरूप हो गया। (दोनों को एक साथ कहना चाहें तो) (वह द्रव्य) अवक्तव्य' ही होता है और (अलग-अलग कहना चाहें तो) वह (द्रव्य) दोनों (अस्ति-नास्ति) ही (है) तथा अन्य (तीन प्रकार से) भी कहा गया (है) अर्थात अस्ति अवक्तव्य, नास्ति अवक्तव्य और अस्ति-नास्ति अवक्तव्य।
नोटः
सम्पादक द्वारा अनूदित
(38)
प्रवचनसार (खण्ड-2)
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org