SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 43
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 22. दव्वट्ठिएण सव्वं दव्वं तं पज्जयट्टिएण पुणो। हवदि य अण्णमणण्णं तक्काले तम्मयत्तादो।। दव्वट्ठिएण सव्वं दव्वं पज्जयट्ठिएण पुणो हवदि (दव्वट्ठिअ) 3/1 वि द्रव्यार्थिक (नय) से (सव्व) 1/1 सवि सब (कोई भी) (दव्व) 1/1 द्रव्य . (त) 1/1 सवि वह (पज्जयट्ठिअ) 3/1 वि पर्यायार्थिक (नय) से अव्यय क्योंकि (हव) व 3/1 अक होता है अव्यय [(अण्णं)+(अण)+ (अण्णं)] अण्णं (अण्ण) 1/1 सविभिन्न अण (अ) = नहीं नहीं अण्णं (अण्ण) 1/1 सवि भिन्न (तक्काल) 7/1 उस अवसर पर (तम्मयत्त) 5/1 . एकरूपता के कारण और .. अण्णमणण्णं तक्काले तम्मयत्तादो अन्वय- दव्वट्ठिएण सव्वं दव्वं अण्णं अण हवदि य पज्जयट्ठिएण तं अण्णं पुणो तक्काले तम्मयत्तादो। अर्थ- द्रव्यार्थिक (नय) से (एक द्रव्य की विभिन्न पर्यायों में) कोई भी द्रव्य भिन्न नहीं होता है और पर्यायार्थिक (नय) से वह (द्रव्य) (पर्यायों की भिन्नता के कारण) भिन्न (होता है) क्योंकि (वह द्रव्य उसी पर्याय से) उस अवसर पर एकरूपता के कारण (भिन्न कहा जाता है)। 1. 'कारण' व्यक्त करनेवाले शब्दों में पंचमी का प्रयोग होता है। (प्राकृत-व्याकरण, पृष्ठ 42) (36) प्रवचनसार (खण्ड-2) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy