SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 39
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ • 18. णत्थि गुणो त्ति व कोई पज्जाओत्तीह वा विणा दव्वं। दव्वत्तं पुण भावो तम्हा दव्वं सयं सत्ता। णत्थि गुणो त्ति गुण कोई-कोई पज्जाओ तीह अव्यय नहीं है [(गुणो)+ (इति)] गुणो (गुण) 1/1 इति (अ) = निश्चय ही निश्चय ही अव्यय तथा . अव्यय • कोई .. [(पज्जाओ)+ (इति)+ (इह)]. (पज्जाअ) 1/1 पर्याय इति (अ) = निश्चय ही निश्चय ही इह (अ) = इस लोक में इस लोक में अव्यय पादपूरक अव्यय बिना (दव्व) 2/1 द्रव्य (दव्वत्त ) 1/1 द्रव्यता अव्यय चूँकि (भाव) 1/1 वास्तविक सत्य/परमार्थ अव्यय इसलिए (दव्व) 1/1 अव्यय स्वयं (सत्ता) 1/1 सत्ता 3.4 विणा दव्वं दव्वत्तं पुण भावो तम्हा दव्वं द्रव्य सत्ता अन्वय- इह विणा दव्वं कोई गुणो त्ति व पज्जाओ त्ति णत्थि पुण दव्वत्तं भावो तम्हा दव्वं सयं सत्ता वा। ___ अर्थ- इस लोक में बिना द्रव्य के निश्चय ही कोई गुण तथा निश्चय ही (कोई) पर्याय नहीं है। चूँकि द्रव्यता वास्तविक सत्य/परमार्थ (है) इसलिए द्रव्य स्वयं सत्ता (अस्तित्व)(है)। 1. यहाँ छन्द की मात्रा की पूर्ति हेतु इ--ई किया गया है। 2. बिना' के साथ द्वितीया, तृतीया तथा पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है। (32) प्रवचनसार (खण्ड-2) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy