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17. जो खलु दव्वसहावो परिणामो सो गुणो सदविसिट्ठो।
सदवट्ठिदं सहावे दव्व त्ति जिणोवदेसोय।।
खलु दव्वसहावो परिणामो
निश्चय ही द्रव्य का स्वभाव परिणमन
(ज) 1/1 सवि अव्यय [(दव्व)-(सहाव) 1/1] (परिणाम) 1/1 (त) 1/1 सवि (गुण) 1/1 (सदविसिट्ठ) भूकृ 1/1 अनि (सदवट्ठिद) भूकृ 1/1 अनि
वह
गुणो सदविसिट्ठो सदवट्ठिदं
गुण अस्तित्व लक्षणयुक्त सत्ता (अस्तित्व) में अवस्थित स्वभाव में
सहावे
दव्व त्ति (दव्वं ति)
द्रव्य
(सहाव) 7/1 [(दव्व)+ (इति)] दव्वं (दव्व) 1/1 इति (अ) = ही [(जिण)+(उवदेसो)+(अयं)] [(जिण)-(उवदेस) 1/1] अयं (इम) 1/1 सवि
जिणोवदेसोयं
जिन का उपदेश यह
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अन्वय- दव्वसहावो जो परिणामो सो खलु सदविसिट्ठो गुणो सदवट्ठिदं दव्यं त्ति सहावे अयं जिण उवदेसो।
अर्थ- द्रव्य का स्वभाव जो परिणमन (है) वह निश्चय ही अस्तित्व लक्षणयुक्त गुण है (तथा) सत्ता (अस्तित्व) में अवस्थित द्रव्य ही स्वभाव में (अवस्थित) (है)। यह जिन का उपदेश (है)।
यहाँ पाठ होना चाहिए ‘दव्वं ति'।
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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