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________________ 4. सब्भावो हि सहावो गुणेहिं सह पज्जएहिं चित्तेहिं। दव्वस्स सव्वकालं उप्पादव्वयधुवत्तेहिं।। सब्भावो (सब्भाव) 1/1 . अस्तित्व अव्यय निश्चय ही सहावो (सहाव) 1/1 स्वभाव गुणेहिं (गुण) 3/2 गुणों सह अव्यय ' से युक्त पज्जएहिं (पज्जाअ) 3/2 पर्यायों चित्तेहि (चित्त) 3/2 वि अनेक प्रकार के दव्वस्स (दव्व) 6/2 द्रव्य का सव्वकालं [(सव्व) सवि-(काल) 2/1] सर्वकाल में उप्पादव्वयधुवत्तेहिं [(उप्पाद)-(व्वय)-(धुवत्त) उत्पाद-व्यय3/2] ध्रुवत्व (सहित) अन्वय- दव्वस्स हि सहावो सब्भावो सव्वकालं उप्पादव्वयधुवत्तेहिं चित्तेहिं गुणेहिं पज्जएहिं सह। .. अर्थ- द्रव्य का निश्चय ही स्वभाव अस्तित्व (है)। (जो) सर्वकाल में उत्पाद-व्यय-ध्रुवत्व (सहित) (है) (तथा) अनेक प्रकार के गुणों (और) पर्यायों से युक्त (है)। 1. 'सह' के योग में तृतीया होती है। कभी-कभी सप्तमी विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम-प्राकृत-व्याकरणः 3-137) (18) प्रवचनसार (खण्ड-2) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004159
Book TitlePravachansara Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani, Shakuntala Jain
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2014
Total Pages190
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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