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107. एवं जिणा जिणिंदा सिद्धा मग्गं समुट्टिदा समणा।
जादा णमोत्थु तेसिं तस्स य णिव्वाणमग्गस्स।।
सिद्धा
श्रमण
अव्यय
इस प्रकार . जिणा
(जिण) 1/2 . सामान्य केवली जिणिंदा (जिणिंद) 1/2
तीर्थंकर (सिद्ध) 1/2 वि सिद्ध . . मग्गं (मग्ग) 2/1
मार्ग की ओर समुट्ठिदा (समुट्ठिद) भूकृ 1/1 अनि उचित प्रकार से
प्रयत्नशील समणा (समण) 1/2 जादा
(जाद) भूकृ 1/2 [(णमो)+ (अत्थु)] णमो (अ) = नमस्कार नमस्कार . अत्थु (अत्थु) विधि 3/1 होवे
अक अनि तेसिं
(त) 4/2 सवि उन सबको तस्स (त) 4/1 सवि
उस अव्यय
और णिव्वाणमग्गस्स- [(णिव्वाण)-(मग्ग) 4/1] मोक्षमार्ग को
णमोत्थु
अन्वय- एवं जिणा जिणिंदा सिद्धा मग्गं समुट्ठिदा जादा समणा तेसिं य तस्स णिव्वाणमग्गस्स णमोत्थु।
___ अर्थ- इस प्रकार सामान्य केवली, तीर्थंकर, सिद्ध (तथा) मार्ग की ओर उचित प्रकार से प्रयत्नशील हुए श्रमण- उन सबको और उस मोक्षमार्ग को नमस्कार होवे।
1. 2.
'की ओर' के योग में द्वितीया विभक्ति का प्रयोग होता है। णमो' के योग में चतुर्थी विभक्ति का प्रयोग होता है।
(122)
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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