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108. तम्हा तह जाणित्ता अप्पाणं जाणगं सभावेण।
परिवज्जामि ममत्तिं उवट्टिदो णिम्ममत्तम्मि।।
तम्हा
अव्यय
इसलिए और
अव्यय
जानकर
आत्मा को
ज्ञायक
स्वभाव से
जाणित्ता (जाण+इत्ता) संकृ अप्पाणं (अप्पाण) 2/1. जाणगं (जाणग) 2/1 वि सभावेण (सभाव) 3/1 . परिवज्जामि (परिवज्ज) व 1/1 सक ममत्तिं (ममत्ति) 2/1 उवट्टिदो . (उवट्ठिद) भूकृ 1/1 अनि णिम्ममत्तम्मि.. (णिम्ममत्त) 7/1
छोड़ता हूँ
ममता को स्थित
ममता-रहितता में .
___ अन्वय- तह तम्हा सभावेण जाणगं अप्पाणं जाणित्ता ममत्तिं परिवज्जामि णिम्ममत्तम्मि उवट्ठिदो।
अर्थ- और इसलिए स्वभाव से (ही) (जो ज्ञायक है) (उस) ज्ञायक आत्मा को जानकर (मैं) ममता को छोड़ता हूँ, (और) ममता-रहितता में स्थित (होता हूँ)।
प्रवचनसार (खण्ड-2)
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