________________
102. जो एवं जाणित्ता झादि परं अप्पगं विसुद्धप्पा । सागारोऽणागारो खवेदि सो मोहदुग्गंटिं ॥
जो
एवं
जाणित्ता
झादि
परं
अप्पगं
विसुद्धप्पा
सागारोऽणागारो
खवेदि
सो
मोहदुग्गठि
(ज) 1 / 1 सवि
अव्यय
संकृ
(झा) व 3 / 1 सक
( पर) 2 / 1
वि
Jain Education International
जो
इस प्रकार
जानकर
ध्यान करता है
परम
आत्मा
( अप्पग) 2 / 1
[(विसुद्ध ) + (अप्पा)]
[ ( विसुद्ध ) वि - (अप्प ) 1 / 1 ] सद्गुणी आत्मा
[(सागारो) + (अणागारो) ]
सागारो (सांगार) 1/1
अणागारो (अणागार) 1/1
(खव) व 3 / 1 सक
(त) 1 / 1 सवि
[ ( मोह) - ( दुग्गंठि ) 2 / 1 ]
श्रावक
मुनि
नाश करता है
वह
मोहरूपी कठिन गाँठ
अन्वय- जो सांगारोऽणागारो एवं जाणित्ता परं अप्पगं झादि सो विसुद्धप्पा मोहदुग्गंठि खवेदि ।
अर्थ - जो श्रावक (या) मुनि (आत्मा के स्वरूप को ) इस प्रकार जानकर परम आत्मा का ध्यान करता है, वह सद्गुणी आत्मा मोहरूपी ( आत्मविस्मृतिरूपी) कठिन गाँठ का नाश करता है।
प्रवचनसार ( खण्ड - 2 )
For Personal & Private Use Only
(117)
www.jainelibrary.org