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98.
ण
यदि
जो
दु ममत्तिं
अहं
139
दं
ण चयदि जो द ममत्तिं अहं ममेदं ति देहदविणेसु । सो सामण्णं चत्ता पडिवण्णो होदि उम्मग्गं ।।
देहदविणेसु
सो सामण्णं
चत्ता
पडवण्णो'
होदि
उम्मग्गं
अव्यय
(चय) व 3 / 1 सक
(ज) 1 / 1 सवि
प्रवचनसार ( खण्ड - 2)
अव्यय
(ममत्ति) 2 / 1
(अम्ह) 1/1 स [(मम) + (इदं) + (इति)]
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मम (अम्ह) 6/1 स
इदं (इम) 1/1 स
इति (अ) = इस प्रकार
[(देह) - (दविण) 7/2]
(त) 1 / 1 सवि
(सामण्ण) 2 / 1
अनि
( पडिवण्ण) भूक 1 / 1 अनि
(हो) व 3 / 1 अक (उम्मग्ग) 2 / 1
नहीं
छोड़ता है
जो
और
ममता को
मैं
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मेरा
यह
इस प्रकार
शरीर और संपत्ति में
अन्वय- देहदविणेसु दु अहं ममेदं ति जो ममत्तिं ण चयदि सो सामण्णं चत्ता होदि उम्मग्गं पडिवण्णो ।
अर्थ- शरीर और संपत्ति में मैं (यह हूँ) और मेरा यह (है) इस प्रकार जो ममता को नहीं छोड़ता है, वह श्रमणता को छोड़कर रहता है। (इस प्रकार) (उसने) विपरीत मार्ग ग्रहण किया ( है ) ।
वह
श्रमणता को
छोड़कर
1. यहाँ भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग कर्तृवाच्य में किया गया है।
ग्रहण किया
रहता है विपरीत मार्ग
(113)
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